Shruti Pandey

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दरख्तों से झाँकती यादें

कभी कभी बहुत कुछ बीत कर भी थोड़ा रुका रहता है, जो समय समय पर पुराने पड़ चुके घावों की तरह धीरे धीरे रिसता रहता है। मानव मन की भी अजीब दास्तान है जो सामने है वो रिझाता नही और जो बीत चुका है हम उसे भी पूरी तरह बीतने भी नही देना चाहते हैं। जीवन की शायद ये सबसे बड़ी विडंबना है कि, एक समय की अच्छी यादें बीत जाने की वजह से दुखी कर जाती है वही बुरी यादें समय के साथ आँखों के कसैले पन में और बुरी हो जाती है। यूँ किसी दिन वक्त से  अचानक हीमन ने पूछा कि जो है वो कितना खूबसूरत है क्या हम इसे ऐसे ही नही सजो सकते, वक्त ने एक गहरी मुस्कुराहट के साथ मन को देखा और कहा जो भी इस संसार मे है जरा जीव उसका उत्थान उत्कर्ष और पतन पहले से सुनिश्चित हैं मैं इसमें कुछ नही कर सकता। थोड़ी देर के लिये कुछ दरक सा गया मन के अंदर फिर भी खुद को सम्हालते हुए एक और कोशिश की, क्यो न करें मन तो प्रिय को तलाशता है, खुद को तसल्ली देते हुए उसने खुद से कहा ये वक्त मेरा प्रिय है और प्रिय के लिये प्रेम कभी खत्म नही होता वो हमेशा महकता है जगहों में, निशानों में, दरकती यादों में, यहाँ तक कि दीवारों में भी, एक अकाट्य तर्क दिया मन ने।

लेकिन वक्त तो किसी का भी सगा नही है उसका किसी से कोई वादा नही है उसने मन से कहा इतना न सोचो मैं तुम्हारे साथ रहकर भी तुमसे फिसल रहा हूं रोक सको तो रोक लो, मन को ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने उसे रस्सी की तरह कस कर उसकी एक एक बूंद सांस को रोक दिया हो।उसी समय मन ने सोचा कि टूटने और बिछुड़ने में, ज्यादा दुख किसमे होता होगा खुद ही उत्तर दिया खुद को टूटने के लिये भी वक्त का साथ जरूरी है लेकिन बिछुड़ना तो अपना दुख है इसके लिये किसी की जरूरत नहीं है। इसलिये बिछुड़न और वियोग ही नियति है।जो गुजर जाता है लेकिन खत्म नही होता हैं।

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3 Comments

Archana Tiwary

15-Feb-2021 02:39 PM

अच्छी बातों का ज़िक्र किया है

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kapil sharma

10-Feb-2021 05:44 PM

yes .. sahi baat likhi aapne mam

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Shruti Pandey

13-Feb-2021 01:46 PM

🙏

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