दरख्तों से झाँकती यादें
कभी कभी बहुत कुछ बीत कर भी थोड़ा रुका रहता है, जो समय समय पर पुराने पड़ चुके घावों की तरह धीरे धीरे रिसता रहता है। मानव मन की भी अजीब दास्तान है जो सामने है वो रिझाता नही और जो बीत चुका है हम उसे भी पूरी तरह बीतने भी नही देना चाहते हैं। जीवन की शायद ये सबसे बड़ी विडंबना है कि, एक समय की अच्छी यादें बीत जाने की वजह से दुखी कर जाती है वही बुरी यादें समय के साथ आँखों के कसैले पन में और बुरी हो जाती है। यूँ किसी दिन वक्त से अचानक हीमन ने पूछा कि जो है वो कितना खूबसूरत है क्या हम इसे ऐसे ही नही सजो सकते, वक्त ने एक गहरी मुस्कुराहट के साथ मन को देखा और कहा जो भी इस संसार मे है जरा जीव उसका उत्थान उत्कर्ष और पतन पहले से सुनिश्चित हैं मैं इसमें कुछ नही कर सकता। थोड़ी देर के लिये कुछ दरक सा गया मन के अंदर फिर भी खुद को सम्हालते हुए एक और कोशिश की, क्यो न करें मन तो प्रिय को तलाशता है, खुद को तसल्ली देते हुए उसने खुद से कहा ये वक्त मेरा प्रिय है और प्रिय के लिये प्रेम कभी खत्म नही होता वो हमेशा महकता है जगहों में, निशानों में, दरकती यादों में, यहाँ तक कि दीवारों में भी, एक अकाट्य तर्क दिया मन ने।
Archana Tiwary
15-Feb-2021 02:39 PM
अच्छी बातों का ज़िक्र किया है
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kapil sharma
10-Feb-2021 05:44 PM
yes .. sahi baat likhi aapne mam
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Shruti Pandey
13-Feb-2021 01:46 PM
🙏
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